व्यक्ति के व्यवहार के यर्थाथ कारण उसकी आंतरिक गहराइयों में छिपे होते है। व्यवहार की यदि जडें ढूँढनी हो तो निश्चित ही व्यक्ति के चरित्र एवं चिंतन की मिट्टी की परतों को खोदना होगा। चरित्र एवं चिंतन को सही ढंग से जाने बगैर व्यवहार की समग्र व्याख्या असंभव हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें