तृष्णा और वासना से छुटकारा पाने का नाम हम मुक्ति मानते है। सो उसे प्राप्त कर चुके। उच्च आदर्शो के अनुरुप जीवन-पद्धति बनाये रहने, दूसरों में केवल अच्छाई देखने, और सबमें अपनी ही आत्मा देख कर असीम प्रेम करने की तीन धाराओं का संयुक्त स्वरुप हम स्वर्ग मानते रहे है। सो उसका रसास्वादन चिरकाल से हो रहा है। अब न स्वर्ग जाने की इच्छा हैं न मुक्ति पाने की।-‘‘ हमारे परमपूज्य गुरुदेव ’’
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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