रविवार, 23 अक्तूबर 2011

मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ

यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि पारमार्थिक कार्यों में निरन्तर प्रेरणा देने वाली आत्मिक स्थिति जिनकी बन गई होगी, वे ही युग-निर्माण जैसे महान कार्य के लिए देर तक धैर्यपूर्वक कुछ कर सकने वाले होंगे । ऐसे ही लोगों के द्वारा ठोस कार्यों की आशा की जा सकती है । गायत्री आन्दोलन में केवल भाषण सुनकर या यज्ञ-प्रदर्शन देखकर जो लोग शामिल हुए थे, वे देर तक अपनी माला साधे न रह सके, पर जिन लोगों ने गायत्री साहित्य पढक़र, विचार मंथन के बाद इस मार्ग पर कदम बढ़ाया था, वे पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा के साथ लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ते चले जा रहे हैं । युग-निर्माण कार्य के लिए हम उत्तेजनात्मक वातावरण में अपरिपक्व लोगों को साथ लेकर बालू के महल जैसा कच्चा आधार खड़ा नहीं करना चाहते ।

इसलिए इस संघ में उन्हीं लोगों पर आशा भरी नजर डाली जाएगी जो बात को गहराई तक समझ चुके हैं, उसकी जड़ तक जा चुके हैं । वरना आड़े-सीधे लोगों का भानुमती का कुनबा इकट्ठा करके कोई संगठन बना लिया जाए, तो वह ठहरता कहॉं है ? गायत्री परिवार की कितनी ही शाखाएँ इसी प्रकार ठप्प हुईं। अब उस गलती को दुबारा नहीं दुहराना चाहिए। जिन लोगों की दृष्टि में विचारों का कोई मूल्य या महत्त्व नहीं, वे किसी कार्य में देर तक कब ठहरने वाले हैं ?जो लोग अखण्ड-ज्योति नहीं मँगा सके, जो गायत्री साहित्य नहीं पढ़ सके, वे किसी समय बड़े भारी श्रद्धावान दीखने वाले साधक भी आज सब कुछ छोड़े बैठे दीखते हैं । प्रेरणा का सूत्र टूट गया, अपना निज का कोई गहरा स्तर था नहीं, फिर उनके पैर भौतिक बाधाओं के झकझोरे में कब तक टिके रहते ?

इसीलिए हम यह बारीकि से देखते रहते हैं कि सामने बैठा हुआ, लम्बी-चौड़ी बातें बनाने वाला व्यक्ति हमारी विचारधारा के साथ अखण्ड-ज्योति या साहित्य के माध्यम से बँधा है या नहीं ? यदि वह इस की उपेक्षा करता है तो हम समझ लेते हैं कि यह देर तक टिकने वाला नहीं है । जो हमारे विचारों को प्यार नहीं करते, उनका मूल्य नहीं समझते वे शिष्ठाचार में मीठे शब्द भले ही कहें, गुरुजी-गुरुजी, वस्तुत: वे हमसे हजारों मील दूर हैं, उनसे किसी बड़े काम की कोई आशा नहीं रखी जा सकती ।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (२.५०)

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