दूसरों से कुछ कराने वाले को स्वयं कुछ करने वाला होना चाहिये। आदर्श की शिक्षा देने वाले को स्वयं आदर्शवादी होना चाहिये। श्रेष्ठता का मार्ग वह हैं जिस पर खुद चलकर ही किसी को चलने की प्रेरणा दी जा सकती हैं उपदेश सरल हैं पर उसे स्वयं हृदयंगम न करके दूसरो के सामने जीवंत उपदेशो की तरह उपस्थित होना कठिन हैं। इस कठिनाई को जो पार कर सके वही सिद्ध पुरुष हैं। आत्मविजय की सिद्धि जिसने प्राप्त कर ली, उसके लिए लोकविजय का मार्ग कुछ कठिन नही रह जाता है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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