सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

1) दैवी शक्तियों के अवतरण के लिये पहली शर्त हैं-साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता।
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2) देवत्व साधना से मिलता है।
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3) देने के लिए दान, लेने के लिए ज्ञान और त्यागने के लिए अभिमान।
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4) दूध, दही, घी, मधु और चीनी-जैसे ये पंचामृत हैं वैसे ही अध्यात्म का पंचामृत है- शुद्ध सात्विक आहार, पेट साफ, मन साफ, बुद्धि में सात्विक विचार तथा दृढ मदहाश्रय।
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5) दूषित अन्तःकरण का व्यक्ति चिन्ता की कालिमा से कलंकित रहता है।
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6) दूर देश में विद्या मित्र होती हैं, घर में पत्नी मित्र होती हैं, रोगी का मित्र औषधि हैं और मरे हुये का मित्र धर्म होता है।
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7) दूसरा बच्चा होवे कब, पहला स्कूल जाए तब।
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8) दूसरो के लिये करना कर्मयोग हैं, अपने को जानना ज्ञानयोग हैं और परमात्मा को मानना भक्तियोग है।
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9) दूसरों की निन्दा करके आज तक किसी को सुख नहीं मिला है।
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10) दूसरों की निन्दा सुनने में अपना समय नष्ट मत करो।
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11) दूसरों की सुन्दरता पर न रीझे। अपने अन्तराल में झाँके और देंखे कि उसमें सौन्दर्य का भण्डार भरा पडा है।
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12) दूसरों की तरफ देखने वाला कभी कर्तव्यनिष्ठ हो ही नहीं सकता। दूसरे का कर्तव्य देखना अकर्तव्य है, अनधिकार चेष्टा है।
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13) दूसरों को धोखा देना, स्वयं को धोखा देना ही है।
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14) दूसरों को सुख पहुँचाने से विलक्षण सुख मिलता है।
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15) दूसरों के कर्त्तव्य को अपना अधिकार, दूसरों की उदारता को अपना गुण और दूसरों की निर्बलता को अपना बल न मानना चाहिये।
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16) दूसरों के लिये जीने वाला अक्षय कीर्ति प्राप्त करता है।
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17) दूसरों के साथ वह व्यवहार न करों जो तुम्हे अपने लिये पसन्द नही।
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18) दूसरों के गुण और अपने अवगुण ढूँढो।
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19) दूसरों पर बहुत अधिक निर्भर रहने से निराशा के अवसर बढ़ जाते है।
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20) दूसरों से पूर्व भोजन समाप्त कर उठों नही, और यदि उठ जाये तो उनसे क्षमा माँगनी चाहिये।
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21) दूसरों से आग पैदा करने के लिए खुद को जलना पड़ता है।
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22) दूसरे के दुःख से दुःखी होना सबसे ऊँची सेवा हैं और गोपनीय सेवा है, सेवा का मूल है।
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23) दूसरे हमें धोखा नहीं देते, हम स्वयं अपने को धोखा देते है।
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24) व्यक्ति की तीन तस्वीरे हैं (1)लोग उसे किस रुप में समझते हैं। (2)वह किस रुप में जीता हैं। (3)वह किस रुप में अपने आपको प्रस्तुत करता हैं। तीनो चित्रों में से पहला मान्यता का हैं, दूसरा यथार्थ का हैं और तीसरा अयथार्थ का है।

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