मंगलवार, 24 मई 2011

अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1965

1. परमात्मा का स्वरूप विराट् विश्व

2. सच्ची उपासना का स्वरूप

3. आत्मविकास के लिए लोकसेवा आवश्यक हैं

4. तटस्थ रहिए-दुःखी मत हूजिए

5. महान् कर्मयोगी-भगवान् बाल गंगाधर तिलक

6. लघु कथा-प्रयत्न करो

7. हम शक्तिशाली बने, निर्बल नहीं

8. शक्ति और भक्ति के मूर्त-रूप गुरू गोविन्द सिंह

9. निकृष्ट स्वार्थ के विषधर से बचे रहिए

10. धर्मोद्धारक-राघवेन्द्र स्वामी

11. आत्म निर्माता-श्री रामानन्द चट्टोपाध्याय

12. आप घाटे में हैं, इसका दुःख मत मानिए

13. अपने आपको विकसित होने दीजिए

14. विचारों की हरियाली उगाइये

15. जिन्होने साहसपूर्वक अपने को बदला-वे स्वामी श्रद्धानन्द

16. आजीवन कर्मव्रती-देशबन्धु चितरंजन दास

17. पतिव्रत धर्म की महान् महत्ता

18. बाल अपराध बढ़े तो राष्ट्र गिर जायगा

19. उधार सौदा-ऋण समान

20. परिजनों का पालन ही नहीं, निर्माण भी

21. युग निर्माण आन्दोलन की प्रगति

22. युद्ध-विराम से सुरक्षा कार्य शिथिल न हो

23. धर्म मंच से युग निर्माण का प्रेरणाप्रद साहित्य

24. उद्बोधन

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