आपके अन्दर भी एक महापुरूष सोया पड़ा हैं, उसे वांछित साधन एवं साधना द्वारा प्रबुद्ध कीजिए और समाज में अपना वह महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कीजिए, जो कही न कही पहले से ही सुरक्षित रखा हैं।
इसी जीवन का कुछ अंश यदि आप समाज सेवा, अध्ययन एवं परोपकार में लगा दे तो वह दिन दूर नहीं जबकि समाज आपको सर आँखों पर चढ़ाकर अपना मार्गदर्शक मान ले। उठिए और श्रीकृष्ण की तरह आज ही शुभारम्भ का पांचजन्य फूँक दीजिए और कुप्रवृत्तियों की कौरवों की सेना को निरस्त कर डालिए। आपसे आशा की जा सकती हैं कि आप संसार के उन हजार महापुरूषों के जीवन से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ेंगे जो प्रारम्भ में आप जैसे ही साधारण एवं सामान्य स्थिति के रहे हैं।
यह संसार कर्मभूमि हैं। मनुष्य कर्म करने के लिए ही इस धराधाम पर अवतरित हुआ हैं। कर्म और निरंतर कर्म ही सिद्धि एवं समृद्धि एवं समृद्धि की आधार शिला हैं। कर्मवीर, कर्मयोगी तथा कर्मठ व्यक्ति कितनी ही निम्न स्थिति, सामान्य श्रेणी और पिछड़ी हुई अवस्था में क्यों न पड़ा हो आगे बढ़कर, परिस्थितियों को परास्त कर अपना निर्दिष्ट स्थान प्राप्त कर ही लेता हैं। कर्म की गति काल भी रोक सकने में असमर्थ हैं। उठिए अपना लक्ष्य प्राप्त करके दिशा देखिए कि वह किधर आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं ? अपने उद्योग को उद्यत एवं कर्मशक्ति को चैतन्य कीजिए और यह मानकर जीवनपथ पर अभियान कीजिए कि आप एक महापुरूष है, आपको अपने अनुरूप अपने चरित्रबल पर समाज में अपना स्थान बना ही लेना हैं।
युग निर्माण योजना दिसम्बर 2010
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें