एक बार खेतड़ी नरेश ने स्वामी विवेकानंद को अपने यहाँ भोजन पर आमंत्रित किया . उन्हें खिचड़ी बहुत पसंद था इस लिए उन्हें गरम-गरम खिचड़ी परोसी गयी. खिचड़ी में ढेर सारी घी होने कि वजह से काफी अच्छी खुशबू आ रही थी जो स्वामी जी के मन को अपनी ओर खिची चली जा रही थी. स्वामी जी ने बिना देर किये तुरंत थाल के बीच में ही हाथ डाल दिया . खिचड़ी अभी बहुत गरम थी इस वजह से स्वामी जी कि उंगलिया जलने लग रही थी. मौका की नजाकत को देखकर राजा ने स्वामी जी को कहा ,
'गर्म खिचड़ी को बीच से न खाकर हमेशा किनारे से ही खाना चाहिए . '
जब स्वामी जी का भोजन हो गया तो चलते वक्त उन्होंने राजा से कहा ,'राजन आज तो हमे खिचड़ी से भी ज्ञान प्राप्त हो गया है कि कोई भी काम बीच से न शुरू करके एक छोर से ही करना चाहिए.'
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