एक बार महात्मा बुद्ध पहाड़ी इलाके से गुजर रहे थे तभी एक हत्यारे ने उन्हें घेर लिया, उसने बुद्ध को रोका और कहा कि तुम वापस लौट जाओ तों मैं तुम्हे छोड़ दूँ, अन्यथा यह मेरी तलवार तुम्हरी गर्दन को काट देगी ।
बुद्ध ने कहा, 'एक दिन तों यह गर्दन गिर ही जानी है अगर तुम्हरे काम आ जाए तों मैं तैयार हूँ। लेकिन इससे पहले कि तुम मेरी गर्दन काटो एक छोटा सा काम करके मुझपर कृपा करते जाओ । उस हत्यारे ने पूछा, 'कौन सा काम, मरते हुये आदमी की अब कौन सी इच्छा ? और उसे कौन पुरी न कर दे ? बोलो क्या काम है ?'
बुद्ध ने कहा,' यह जो सामने पेड़ है उस पर से थोडी पत्तियाँ मुझे तोड़ दो । वह बहुत हैरान हुआ, उसने कहा इसका क्या करोगे ? बुद्ध ने कहा, 'फिर भी तुम इसे तोड़ दो । उस हत्यारे ने अपने तलवार मारी और एक छोटी शाखा काटकर बुद्ध के हाथों में देदी। बुद्ध ने कहा, ' इतना तुमने किया, एक छोटा सा काम और। इसे वापस जोड़ दो । हत्यारा बोला, ' यह तों मुश्किल है यह नही हो सकता।'
तो बुद्ध ने कहा, तोड़ने का काम तो बच्चा भी कर सकता था तुम तो पुरूष हो बहादुर हो, जोड़ने का काम करो तोड़ने में कहा गौरव है, आओ अब तुम मेरी गर्दन काट लो ।
इतना सुनते ही उस हत्यारे ने तलवार पटक दी और बुद्ध की चरणों में गिर पड़ा।
तोड़ने का काम हमेशा कमजोर और कायर ही करते है, सवाल तो जोड़ने का है। प्रेम जोड़ता है और घृणा तोड़ता है। इस दुनिया में जिसने भी, जितना भी पाया है वो जोड़कर ही पाया ...तोड़कर नही।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें