मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

सफलता की धुरी

स्काटलैंड का सम्राट ब्रूस अभी गद्दी पर बैठ भी नहीं पाया था कि दुश्मनों का आक्रमण हो गया। संभल ही पाया था कि फिर दोबार हमला हो गया। हारते-हारते बचा। फिर सेना व्यवस्थित की, पर कई राजाओं ने मिलकर हमला किया तो राजगद्दी फिर छिन गई। लगातार चैदह बार उसने राजगद्दी पाने का प्रयास किया, पर असफल रहा। उसके सैनिक भी उसके भाग्य को कोसने लगे और उसे छोड़कर जाने लगे।

निराश ब्रूस एक दिन एक खंडहर में बैठा था। एक मकड़ी हवा में उड़कर एक दूसरे पेड़ की टहनी से जोड़कर जाला बनाने का प्रयास कर रही थी। मकड़ी खंडहर में थी, पेड़ बाहर था। जाला हर बार टूट जाता। बीस बार प्रयास किया, हर बार टूट गया। 21 वी बार में वह सफल हो गई। ब्रूस उछलकर खड़ा हो गया। बोला-‘‘ अभी तो सात अवसर मेरे लिए भी बाकी हैं। हिम्मत क्यों हारू ? पूरी शक्ति लगाकर व्यवस्थित सेना के साथ उसने फिर हमला किया और न केवल राज्य वापस लिया, वरन सभी दुश्मनों को उसने परास्त कर डाला एवं सारे देश का सम्राट बन गया। 

एकाग्रता-मनोयोग-शक्तिसंचय ही सफलता की धुरी हैं।

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