स्वरयोग एवं भोजन ग्रहण करने का परस्पर बड़ा महत्वपूर्ण संबंध हैं। कहा गया हैं-
दाहिने स्वर भोजन करे बाएं पीवे नीर।
ऐसा संयम जब करे सुखी रहे शरीर।।
बाएं स्वर भोजन करे दाहिने पीवे नीर।
दस दिना भूला यों करै पावे रोग शरीर।
भोजन या दूध दही तब ही सेवन करे, जब दायां स्वर चल रहा हो। जल ग्रहण करने के समय बायां स्वर चलना चाहिए। इसके विपरीत आचरण से काया रोगी होती है।
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