एक युवक बड़ा परिश्रमी था। दिन भर काम करता, शाम को जो मिलता खा-पीकर चैन की नींद सो जाता। एक दिन उसने एक धनी व्यक्ति का ठाठ-बाट देख लिया। बस नींद उड़ गई। रात भर नींद नहीं आई, उसी के ख्वाब देखने लगा। कुछ संयोग ऐसा हुआ कि उसकी लाटरी लग गई। ढेरों धन उसे अनायास मिल गया। अब उसका सारा समय भोग-विलास में बीतने लगा। वासना की तृप्ति हेतु निरत होने से व श्रम के अभाव से वह दुर्बल होता चला गया। उसके पूर्व के मित्र उससे जलन रखने लगे। सब पैसे के प्रेमी हो गए। उसे भी किसी पर विश्वास नहीं रहा। चिंता और दोगुनी हो गई। नींद फिर चली गई। सोचने लगा, इससे पूर्व की जिंदगी बेहतर थी।
एक दिन एक महात्मा जी उधर आए। उसने उनसे सुख और खुशी का मार्ग पूछा। महात्मा जी ने एक शब्द कहा-‘‘संतोष’’ और आगे बढ़ गए। युवक समझ गया। सारी मुफ्त की सम्पत्ति उसने एक अनाथालय और विद्यालय को दान कर दी । स्वयं एक लोकसेवी का, परिश्रम से युक्त जीवन जीने लगा।
सबसे बड़ा धन संतोष धन हैं।
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