भूकंप राहत का कार्य उत्तर बिहार में डॉ0 राजेंद्रप्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति) की देख-रेख में बड़े जोरों से चल रहा था। दरभंगा से पटना के लिए वे डॉ0 रामबहादुर सिंह के साथ बैठे। वैशाख का माह था। सूर्य तप रहा था। सोनपुर स्टेशन पर गाड़ी रूकी । सभी को प्यास लग रही थी। स्टेशन पर नल में पानी नहीं था एवं पानी पिलाने वाला भी कोई नही था। एक ही आवाज थी-`पानी वाले कहाँ है -´ इस बीच राजेंद्र बाबू डिब्बे से गायब हो गए। कुछ देर बाद लोगों ने देखा कि राजेंद्र बाबू एक बालटी मे पानी और दूसरे हाथ में लोटा लिए आवाज दे देकर सभी को पानी पिला रहे थे। लोग तो प्यास को जानते थे, राजेंद्र बाबू को कौन पहचाता ! सारी रेल में घूम-घूम कर उनने पानी पिलाया । आज बिसलरी की बोतल हाथ में लेकर घुमने वाले क्या जानेंगे इस सेवा का रस, जो इस राष्ट्र के प्रथम प्रमुख ने सहज अकिंचन बनकर की थी।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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