वक्कुल स्थविर भगवान बुद्ध के उन शिष्यों में जाने जाते हैं , जिनने सही अर्थों में जीवन-साधना की। महाकाश्यप के समान ही उग्र तप किया, पर धर्म-प्रवचन में उनकी रूचि नही थी। वे लगभग 160 वर्ष जिए, पर अपने जीवन से उनने उपदेश दिया। स्थविर राजगृह के समीप अचेल काश्यप से हुआ उनका वार्तालाप पढ़ने योग्य है। काश्यप ने पूछा-`` आज आप को सन्यस्थ हुए कितना समय हो गया - ´´ वक्कुल बोले-`` मुझे अस्सी वर्ष हो गए।´´ काश्यप ने पुछा-`` इस बीच कभी आपके चिंतन में विषय-वासना ने आक्रमण किया - ´´ भिक्षु बोले-`` एक बार भी भगवान की कृपा से मेरे मन में काम संबंधी विचार नहीं आया।´´ ``कभी `मै´ ने सताया -´´वक्कुल बोले-``द्वेष किसी के प्रति नहीं जागा, मैं समझता हूँ कि यही उत्तर काफी है । हिंसा-द्रोह संबंधी विचार कैसे होते हैं, मै नही जानता । मैने कभी गुरूभाइयों से अपने शरीर की सेवा नही करवाई। हर्रं के टुकड़े के बाराबर की औषधी कभी नही खाई शय्या पर मैं कभी लेटा नहीं। भिक्षुणियों के संपर्क में मै कभी रहा नहीं। ´´ अपने स्वस्थ खिलते चेहरे वाले भिक्षुओं को भगवान ने संबोधित कर कहा-``भिक्षुओं ! वाणी से उपदेश देना जरूरी नहीं। अपने आचरण से सीख दे, वही सच्चा उपदेशक है। मेरे स्वस्थ नीरोग निर्विकार शिष्यों में श्रेष्ठ है वक्कुल ।´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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