30 अप्रेल, 1930 का प्रसंग है। पेशावर के किस्साखानी बाजार में एक सभा हो रही थी। बड़ा विशाल जनसमुह था। चरखे वाला तिरंगा मंच पर लहरा रहा था। रॉयल गढ़वाल रेजिमेंट के सैनिकों को वहाँ तैनात किया गया था। कप्तान रिकेट उसका कप्तान था। जनता ने जोशोखरोश में `महात्मा गांधी की जय´, `अल्ला हो अकबर´ के नारे लगाना आरंभ कर दिया। तभी एक गोरे अर्दली ने कप्तान को एक कागज थमाया, जिसमें उच्चाधिकारियों द्वारा गोली मारने का आदेश था। उसे पढते ही कप्तान चिल्लाया-``गढ़वाली ! थ्री राउंड फायर ! परंतु कोई प्रतिक्रिया सैनिको पर नही हुई। एक तेजस्वी गढ़वाली हवलदार आगे आया और अकड़कर बोला-``गढ़वाली ! सीज फायर ´´(गोली मत दागो) सबने अपनी राइफलें जमीन पर रख दीं। यह प्रत्यक्ष विद्रोह था। तेजस्वी गढ़वाली हवलदार का नाम था चंद्रसिंह। वे एक कृषक परिवार में जन्में थे और उनने प्रथम विश्वयुद्ध में कई पदक पाए थे। उनका ही संकल्प था कि संपूर्ण रेजिमेंट उनके साथ एकजुट हो गई। सभी सैनिक बंदी बना लिए गए। चंद्रसिंह गढ़वाली को आजन्म कैद मिली । इस घटना का भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम में अपना एक महत्तपूर्ण स्थान है। उत्तराखंड के वीर ने`भारत छोड़ो आंदोलन´ की आधारिशला रखी ऐसा कहा जा सकता है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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