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2) भाग्य पर नहीं चरित्र पर निर्भर रहो।
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3) श्रेष्ठ चिन्तन की सार्थकता तभी हैं, जब उससे श्रेष्ठ चरित्र बने और श्रेष्ठ चरित्र तभी सार्थक हैं, जब वह श्रेष्ठ व्यवहार बन कर प्रकट हो।
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4) सद्चिन्तन से ही सद्चरित्रता हस्तगत हो सकती है।
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5) सुन्दर चेहरा आकर्षक भर होता हैं, पर सुन्दर चरित्र की प्रामाणिकता अकाट्य है।
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6) दर्पण मे अपना चेहरा देखों, चेहरे में अपना चरित्र देखो।
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7) चरित्र बल महान् बल है।
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8) चरित्र की सुन्दरता ही असली सुन्दरता है।
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9) चरित्र का परिवर्तन या उत्कर्ष वर्जन से नहीं, योग से होता है।
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10) चरित्र से बढकर और कोई उत्तम पूंजी नहीं।
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11) चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्व हैं और वह प्रतिभा से उच्च है।
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12) चारित्रिक समर्थता के बिना भौतिक प्रगति एवं सुव्यवस्था के दिवास्वप्न देखना उपयुक्त नहीं।
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13) जहॉं शासक चरित्र विहीन, वहॉं आपदा नित्य नवीन।
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14) अपमान को निगल जाना चरित्र पतन की आखिरी सीमा है।
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15) अपनी गलती मान लेना महान् चरित्र का लक्षण है।
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