रविवार, 9 अगस्त 2009

बालक

1) बालक प्रकृति की अनमोल देन हैं, सुन्दरतम कृति हैं, सबसे निर्दोष वस्तु हैं। बालक मनोविज्ञान का मूल हैं, शिक्षक की प्रयोगशाला है। बालक मानव-जगत् का निर्माता हैं। बालक के विकास पर दुनिया का विकास निर्भर हैं। बालक की सेवा ही विकास की सेवा है।
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2) जिन बालकों का तपस्यामय वातावरण में विकास होता हैं, वे ही बडे होकर महापुरुषों के रुप में सर्वतोमुखी उन्नति करके नर-रत्नो के रुप में संसार के समक्ष आकर जगमगाते है।

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3) जो बचपन और जवानी में भजन नहीं करते, वे बुढापे में भजन नहीं कर सकते।

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4) जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बडे खुद अमल करे तो यह संसार स्वर्ग बन जाये।

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5) बचपन:- यह शब्द हमारे सामने नन्हे-मुन्नों की एक ऐसी तस्वीर खिंचता हैं, जिनके हृदय में निर्मलता, ऑखों में कुछ भी कर गुजरने का विश्वास और क्रिया-कलापो में कुछ शरारत तो कुछ बडों के लिए भी अनुकरणीय करतब।

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6) बच्चों को पहला पाठ आज्ञापालन का सिखाना चाहिये।

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7) बच्चे वे चमकते वे तारे हैं जो भगवान के हाथ से छूटकर धरती पर आये हे।

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8) मॉ का हृदय बच्चे की पाठशाला है।

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9) जिस समय अनाथ बच्चा ऑसू बहाता हैं, उस समय वह ऑसू सीधे परमेश्वर के हाथ में जा पडता है।

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10) देश के भविष्य की संभावना देखनी हैं, तो आज के बच्चों का स्तर देखो।

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11) दूसरा बच्चा होवे कब, पहला स्कूल जाए तब।

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12) जो हम बच्चों को सिखलाते, उसे स्वयं कितना अपनाते।

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13) गरीब बच्चों को मिठाई खिलाओ तो शोक-चिन्ता मिट जायेंगे।

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14) ईश्वर कभी-कभी अपने बच्चों की ऑखों को ऑसुओं से धोता हैं, ताकि वे उसकी कुदरत और उसके आदेशो को सही पढ सके।

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