शनिवार, 4 जुलाई 2009

संघर्ष का सत्पथ

वर्ष 2009 के नवीन सूर्योदय ने संघर्ष का नया सत्पथ प्रकाशित किया है। जिन्हें महात्मा ईसा की याद है, उन्हे बरबस यह भी स्मरण हो आएगा कि महात्मा यीशु ने अपनी संपूर्ण आध्यात्मिक जीवन यात्रा में पल-पल कठिन संघर्ष किए, क्षण-क्षण दारुण यातनाएँ सहीं । जीवन के अंतिम समय के अंतिम संघर्ष में उन्हाने शूली की महायातना को लोकहित मे स्वीकारा । उनकी उपस्थिति एवं उनके अस्तित्व को बीते हुए आज 2009 वाँ वर्ष आ चुका है , परंतु उनका आध्यात्मिक संदेश आज भी शाश्वत है। लोकहित से ही आत्महित सधता है और आत्महित से ही पवित्रता, सत्यता, व्यापकता एवं उदारता में ही लोकहित के समिन्वत आध्यात्मिक यात्रा के प्रत्येक शिखर पर आरोहण संघर्ष के नए सत्पथ पर चलकर ही किया जाता है ।

वर्ष 2009 के प्रथम सूर्योदय की नई किरण के नवीन उजास में इसी सत्य का प्रकाश है। इस नव वर्ष की सूर्य-किरणों में आत्महित व लोकहित के समिन्वत अध्यात्म मार्ग पर चल पड़ने की प्रेरणा है, संघर्ष के सत्पथ पर निकल पड़ने का आह्वान है । इस नव वर्ष का प्रत्येक मास, प्रत्येक दिवस ,यहाँ तक कि प्रत्येक घड़ी ,क्षण पल अपने कोष में अनेक बहुमूल्य उपहार लिए हैं, किंतु ये उपहार पाने के लिए हममें से हर एक को संपूर्ण वर्ष सचेत,सचेष्ट रहना होगा, संघर्षों की नई-नई चुनौतियाँ स्वीकारनी होगी( शारीरिक-मानसिक यातनाओ का सामना हँसते-खिलखिलाते -मुस्काराते करना होगा । जो भी ऐसा कर पायेगा , उसके लिए यह वर्ष नई सफलताओं, नवीन समृद्धि का वरदान देगा । उसके पावँ जहा भी पड़ेंगे, वही स्थान आध्यात्मिक प्रकाश से पूर्ण हो जायेगा ।

संघर्ष का सत्पथ ही हमारे लिए विजय का द्वार है। वह श्रेय मार्ग है, जिसकी चर्चा वेदवाणी करती है, जिसे ऋषियों ने अपने द्वारा उच्चरित मंत्रो मे गाया है। अतीत व वर्तमान के सभी महामानवों ने इसी की प्रेरणा दी है । यही इस वर्ष का और हमारे अपने जीवन का सदा आध्यात्मिक सत्य है।


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