शनिवार, 4 जुलाई 2009

कबीर

कबीर की ख्याति चारों ओर सिद्ध पुरूष की थी । दूर-दूर से जिज्ञासु आते, तब भी वे पहले की तरह कपड़ा बनाते और सत्संग चलाते । एक शिष्य ने पूछा-``आप जब साधारण थे तब कपड़ा बुनना ठीक था, पर अब आप एक सिद्ध पुरूष है और निर्वाह की भी कमी नहीं, फिर कपड़ा क्यों बुनते हैं ?

कबीर ने सरल भाव से कहा-``पहले मैं पेट पालने के लिए बुनता था, पर अब मैं जनसमाज में समाए भगवान का तन ढकने और अपना मनोयोग साधने के लिए बुनता हूँ । ´´ कार्य वही हो, पर दृष्टिकोण भिन्न हो तो सकता है ! यह जानकर शिष्य का समाधान हो गया ।
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