दन्तिदन्तसमानं हि नि:सृतं महतां वच: ।
कूर्मग्रीवेण नीचानां पुनरायाति याति च ।।
महापुरुष की वाणी हाथी के दाँत के समान एक बार निकलती है । जबकि दुर्जनों की वाणी कछुए की गरदन की तरह बार-बार अंदर-बाहर आती-जाती रहती है। (अर्थात् सज्जन जो एक बार कह देते हैं, उस पर आरुढ़ रहते हैं और दुर्जन जो कहते हैं, उसे बार-बार बदलते रहते हैं) ।
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