सत्रहवी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, काश्मीर के डोगरा राजपूत परिवार में जन्मे लक्ष्मण देव (बाद में बंदा वैरागी) शुरु से ही देश, धर्म और स्वाभिमान की रक्षा के लिए, अत्याचारी मुगल शासको का अंत करने की बात कहते थे। एक दिन शिकार के दोरान गर्भवती हिरनी उनके हाथों गलती से मार दी गई , गर्भ से दो बच्चे छिटककर गिरे तो उन्होने तुरंन्त वैराग्य ले लिया । 16 वर्ष लक्ष्मण देव नासिक के पास पंचवटी में जाकर तप करने लगे । पन्द्रह वर्ष के दौरान उनकी ख्याति वैरागी के रुप में, उस क्षेत्र में हो गई । इससे घबराकर वैरागी दक्षिणी पंजाब चले गए । गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें राष्ट्रधर्म के लिए आगे आने को प्रेरित किया । गुरु के बंदे वे बने , इसलिए बंदा वैरागी कहलाए । एक हुक्मनामा और 25 शिष्य (सिख) लेकर खालसा दल उनने बनाया। प्रखर निष्ठा एंव देशभक्ति की भावना से भरे सैनिकों की एक अच्छी फौज तैयार हो गई । सरहिंद के नवाब ने गुरु साहब के पुत्रों को जिंदा दीवार में चिनवा दिया था। उसी नवाब वजीर खाँ पर आक्रमण कर उनने सरहिंद जीत लिया । अपने राज्य में उनने गुरु गोविंद सिंह के नाम के सिक्के चलवाए । यवन शासको ने उनका बड़ा बर्बर अंत किया, पर उनके मुख से उफ तक न निकली । शरीर छोड़ दिया , पर धर्म नहीं बदला ।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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