धर्म और अध्यात्म के बल पर जीवन का विकास कितना सहज हो सकता है- स्वर्गीय हनुमान प्रसाद पोद्दार ने स्वयं को इसके एक उदाहरण के रुप में प्रस्तुत किया । स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद ने गीता के आधार पर जीवन जीकर, उच्च जीवनमूल्यों का प्रतिपादन किया किया था। गीता एक अर्थ में राष्ट्रीय पुनर्जागरण की प्रेरणा ग्रन्थ बन गई थी । भाई जी (इसी नाम से पोद्दार जी विख्यात हुए ) ने, इसी महत्ता को देख `साहित्य सम्वार्धिनी समिति´ की स्थापना की और नई सजधज के साथ भारतमाता के चित्र सहित , गीता का प्रकाशन किया । बाद में धर्मप्रेमी , सद्गृहस्थ विद्वान श्री जयदयाल गोयंदका जी के संपर्क में आने से, उनकी गीता निष्ठा बढती गई । दोनो महानुभावो ने गीताप्रेस की स्थापना की । इस बीच उन पर ब्रिटिश सरकार के मुकदमे भी चले । उनके घर की देख-भाल जयदयाल आदि करते । जेल से छूटने पर उनने `कल्याण´ पत्रिका का प्रवर्तन किया । गोरखपुर आकर बसे भाईजी का सारा जीवन धर्मप्रचार , समाजसुधार में लग गया । एक सद्गृहस्थ संत के रुप में उनका जीवन बीता । गीताप्रेस गोरखपुर ने विचार-क्रांति की वह जन-जन में गहरी पैठ कर गई । धन्य हैं भाईजी ! जिनका सारा जीवन अध्यात्म मार्ग के पथिक की तरह बीता ।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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