प्रेमचंद जी को साहित्य सम्राट बनाने का श्रेय उनकी माँ को ही जाता है । लोक-जीवन से जुड़े, उनकी माँ के किस्से कहानियाँ कितने लंबे हाते थे कि सुनते-सुनाते खत्म ही नहीं होते । बहुत प्रखर बुद्धि और कई भाषाओं की जानकार थीं वे। पढ तो सब लेती थीं, पर एक भी अक्षर लिख नही पाती थी । प्रेमचद जी की कहानियाँ-उपन्यासों में जो सहज पात्र, स्वाभाविक घटनाक्रम, आदर्शोन्मुखी और भारतीय जनजीवन का सजीव चित्रांकन हुआ है, बहुत कुछ उनकी माता की ही देन था। वे अपनी कहानियों से श्रोताओं को इस तरह बाँधे रखती थी कि वे तन्मय होकर रह जाते । प्रेमचंद जी ने अपनी माँ से कथा-कहानियाँ, लोक-जीवन के चरित्रों के बारे मे सुनकर अपने आप को गढा, तभी वे एक विशिष्ट व्यक्ति बन सके । माँ ने बेटे को बनाया, ऐसे उदाहरणो से हमारा इतिहास भरा पडा है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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