1) धर्म की मर्यादा में अर्थ का उपार्जन एवं काम का सुनियोजन करते हुए मोक्ष की ओर बढने का यहॉ आदर्श निर्धारण रहा है।
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2) धर्म का मार्ग फूलों की सेज नहीं, इसमें बडे-बडें कष्ट सहन करने पडते है।
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3) धर्म का प्रथम आधार आस्तिकता हैं, ईश्वर विश्वास है।
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4) धर्म का उद्धेश्य मानव को पथ भ्रष्ट होने से बचाना है।
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5) धर्म में से दुराग्रह और पाखण्ड को निकाल दो । वह अकेला ही संसार को स्वर्ग बनाने में समर्थ है।
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6) धर्म से आशय श्रेष्ठ गुणों को अपनाना है।
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7) धर्म, सत्य और तप-यही जीवन की सार संपत्ति है।
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8) धैर्य, क्षमा, मनोनिग्रह, अस्तेय, बाहर-भीतर की पवित्रता, इन्द्रिय निग्रह, सात्विक बुद्धि, अध्यात्म विद्या, सत्यभाषण और क्रोध न करना-ये दस सामान्य धर्म के लक्षण है।
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9) युधिष्टिर नाम लेने से धर्म बढता है।
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10) ऊर्ध्व उठे फिर ना गिरे, यही मनुज को कर्म । औरन ले ऊपर उठे, इससे बडों न धर्म।।
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11) कथनी करनी भिन्न जहॉ हैं, धर्म नहीं पाखण्ड वहॉं है।
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12) मानव धर्म ही हिन्दू धर्म की परिसीमा और पूर्णता मानी गयी है।
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13) मेरे लिये नैतिकता, सदाचार और धर्म पर्यायवाची शब्द हैं-राष्ट्रपिता।
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14) चिन्तन (मन), चरित्र (धर्म), एवं व्यवहार (कर्म) यही व्यक्तित्व का त्रिआयामी क्षेत्र है।
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15) प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव रखना तथा सदैव ईमानदार बने रहना परम धर्म है।
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16) प्राणीमात्र में आत्मीयता व दया ही धर्म है।
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17) प्रात: धर्म सेवन, मध्यान्ह अर्थ सेवन और रात्रि काम सेवन करना चाहिये।
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18) राज तन्त्र ही नहीं प्रधान, धर्म तन्त्र पर भी दो ध्यान।
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19) शान्ति के समान दूसरा तप नही, सन्तोष से बडा कोई सुख नहीं, तृष्णा से अधिक बडा कोई रोग नहीं और दया से बडा कोई धर्म नही।
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20) सबसे अच्छी दुनिया वह होती हैं जिसमें ईश्वर तो होता हैं लेकिन कोई धर्म नही।
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21) सत्य मेरी माता हैं, ज्ञान पिता हैं, धर्म भाई है, दया मित्र हैं, शान्ति स्त्री हैं और क्षमा पुत्र हैं। ये छ: मेरे बान्धव है।
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22) सेवा धर्म के साथ शालीनता का समन्वय रहना चाहिये।
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23) उसी धर्म का हैं सम्मान, जिसका सहयोगी हैं विज्ञान।।
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24) दया सबसे बडा धर्म है।
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