हुसैन का कहना है कि उसे तीन बार विशेष रुप से लज्जित होना पड़ा। इनमें पहली घटना एक शराबी की है । वह एक दिन शराब के नशे में पैर इधर-उधर पटकता जा रहा था और कभी-कभी कीचड़ में गिर भी जाता था। हुसैन भी वहीं होकर जा रहा था।
उसने कहा- ``अरे भाई ! पैर ठिकाने रखकर चलो , नही तो कीचड़ में गिर जाओगे।´´ यह सुनकर शराबी ने कहा-``अरे भले आदमी ! तू ही अपने पैरों को सँभालकर रख, क्योकि तू एक धार्मिक पुरुष है। मै तो शराबी हूँ, अगर गिर जाऊँगा तो तो फिर उठ बैठूँगा और पानी से शरीर को धो डालूँगा, पर यदि तू गिर जाएगा तो फिर सहज में स्वच्छ न बन सकेगा।´´
दूसरी घटना मे एक बालक दीपक लेकर आ रहा था। हुसैन ने पुछा- `` यह दीपक कहाँ से लाया ? ´´उसी समय संयोगवश हवा के झोंके से दीपक बुझ गया । उस बालक ने कहा-``पहले तो यह बतलाओ कि दीपक गया कहाँ ? फिर मै तुमको बतलाऊँगा कि दीपक कहाँ से आया था। ´´
तीसरी घटना एक रुप-यौवन संपन्न युवती की है । उसने हुसैन बाबा के पास आकर क्रोधपूर्वक अपने पति के निर्मोहीपन की शिकायत की ।
हुसैन ने कहा-´´बेटी! पहले तू अपने माथे के वस्त्र को ठीक कर जो हट गया है, फिर जो कुछ कहना हो सो कहना ।´´ यह सुनकर उस युवती ने कहा-`` अरे भाई ! मैं तो ईश्वर के बनाए एक पदार्थ के प्रेम में मुग्ध होकर बेखबर हो गई थी, मुझे अपने शरीर का भी होश न था। अगर तुमने सावधान न किया होता तो मैं ऐसी ही हालत में बाजार में चली जाती, पर प्रभु के ध्यान में मस्त होने पर भी `माथा उघाडा है या ढका´ है ऐसी साधारण बात का तुम्हे ध्यान बना रहता है, यह देखकर मुझे तो आश्चर्य होता है । ´´
महात्मा हुसैन का कहना है कि इन शब्दों को सुनकर मैं वास्तव में सावधान हो गया ।
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