गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

ईश्वर की वाणी

1) व्यक्ति का अन्तःकरण ईश्वर की वाणी है।
------------
2) व्यक्तित्व की गरिमा आत्मिक महानता पर निर्भर है।
------------
3) व्यक्तित्व का प्रचार मत करो।
------------
4) व्यक्तित्व के विकास में जिन सद्गुणो की आवश्यकता हैं उनका महत्त्व, स्वरुप और प्रयोग सिखाना अध्यापको का परम उद्धेश्य होना चाहिये।
------------
5) व्यक्तित्व के आयामों को समझना, उन्हे प्रकाशवान बनाना ही तो जीवन-साधना की डगर पर पहला कदम है।
------------
6) व्यथा और वेदनाओं में जो पाठ पढाये जाते हैं वे विश्वविद्यालयों में भी नहीं पढाये जाते है।
------------
7) व्यर्थ चिन्तन का त्याग तथा वर्तमान के सदुपयोग द्वारा भविष्य को उज्ज्वल बनाना चाहिये।
------------
8) व्यावहारिक जीवन की उलझनों का समाधान किन्ही नयी कल्पनाओं में ही मिलेगा, उन्हें ढूँढो
------------
9) व्यस्त मनुष्य को आँसू बहाने के लिये अवकाश नही है।
------------
10) व्यसन मित्र के रुप में शरीर में घुसते और शत्रु बनकर उसे मार डालते है।
------------
11) व्यसनो की लत जिसने डाली, अपने पैर कुल्हाडी मारी।
------------
12) व्यसनो से दूर रहों क्योंकि ये प्राणघातक शत्रु है।
------------
13) व्यवस्थित होने का मतलब हैं किसी काम को करने से पहले काम करना, ताकि जब आप इसे करें तो यह उलझन भरा न रहे।
------------
14) व्यवहार कुशलता वहाँ रहती हैं जहाँ अपेक्षाएँ हो। अपेक्षा-शुन्यता होने पर व्यवहार कुशल बने रहना-उसी महायोगी से सम्भव हैं, जो मन के साथ प्राण और शरीर में भी ठीक-ठीक ईश्वरीय प्रकाश का अवतरण कर सका हो। पूज्य गुरुदेव के जीवन में साधना जगत का यह परम रहस्य सहज उजागर हो सका था।
------------
15) व्यवहार में औचित्य का समावेश करे।
------------
16) व्यवहार से ही मनुष्य के व्यक्तित्व की गहरी परतें अभिव्यक्त होती हैं। इसे सर्वथा अपनी जीवन साधना की मर्यादा एवं गरिमा के अनुरुप होना चाहिये।
------------
17) वृद्धों की सेवा से दिव्य ज्ञान होता है।
------------
18) वृक्षों का साक्षात् भगवान शिव की उपाधि प्राप्त हैं जो विषपान कर अमृत देते है।
------------
19) वह मनुष्य कम विश्वासपात्र हैं जो स्वयं अपना गुप्त सलाहकार नहीं है।
------------
20) वह मनुष्य सबसे अधिक धनवान हैं, जिसका उल्लास सबसे सस्ता है।
------------
21) वह स्थान मन्दिर हैं जहाँ पुस्तकों के रुप में मूक किन्तु चेतना युक्त देवता निवास करते है।
------------
22) वह जो शिक्षण कराने का सामर्थ्य रखता हैं, उसे कभी सीखना नहीं छोडना चाहिये।
------------
23) वह आदमी किसी महान् कार्य के लिये उत्पन्न नहीं हुआ हैं जिसे समय की कद्र नही। 
------------
24) वही मनुष्य ईश्वर के दर्शन कर सकता हैं, जिसका अन्तःकरण निर्मल और पवित्र है।

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin