निष्काम सेवा करने से आप अपने हृदय को पवित्र बना लेते हैं। अहंभाव, घृणा, ईर्ष्या, श्रेष्ठता का भाव और इसी प्रकार के और सब आसुरी संपत्ति के गुण नष्ट हो जाते हैं। नम्रता, शुद्ध, प्रेम, सहानुभूति, क्षमा, दया आदि की वृद्धि होती है। भेदभाव मिटजाते हैं। स्वार्थपरता निर्मूल हो जाती है। आपका जीवन विस्तृत तथा उदार हो जाएगा। आप एकता का अनुभव करने लगेंगे।आप अत्यधिक आनंद का अनुभव करने लगेंगे। अंत में आपको आत्मज्ञान प्राप्त हो जाएगा। आप सब में 'एक' और 'एक' में ही सबका अनुभव करने लगेंगे। संसार कुछ भी नहीं है केवल ईश्वर की ही विभूति है। लोकसेवा ही ईश्वर की सेवा है। सेवा को ही पूजा कहते है।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
आत्मज्ञान और आत्मकल्याण, पृ. ७"
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