ज्ञान और धन दोनों में एक दिन अपनी श्रेष्ठता के प्रतिपादन पर झगड़ा उठ खड़ा हुआ। दोनों अपनी-अपनी महत्ता बताते और दूसरे को छोटा। आत्मा ने कहा- ``तुम दोनों कारण मात्र हो, इसलिए श्रेष्ठ बात ही तुम में क्या है ? सदुपयोग किये जाने पर ही तुम्हारी श्रेष्ठता है अन्यथा दुरुपयोग होने पर तो तुम दोनों ही घृणित बनकर रह जाते हो।´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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