महात्मा गांधी के जीवन की एक घटना है। एक बार एक परिषद् की कार्यवाही आरंभ करने में उन्हें 45 मिनट की प्रतीक्षा करनी पड़ी। कारण था एक अन्य नेताजी, जिन्हें कार्यक्रम की अध्यक्षता करनी थी, उनका देरी से आना। उनके मंच पर आते ही गांधी जी कह उठे, ``यदि हमारे अग्रगामी नेतागणों की यही स्थिति रही तो स्वराज्य भी 45 मिनट देरी से आएगा।´´ समय के पाबंद, कर्तव्य की यह अभिव्यक्ति उनके अंत:करण से सहज ही स्फुरित हुई थी।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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