रावण ने एक और कूटनीतिक चाल फेंकी। बोला-अंगद ! जिस राम ने तेरे पिता को मारा, तू उन्हीं की सहायता कर कहा है ? मेरे मित्र का पुत्र होकर भी तू मुझ से बैर कर रहा है !
अंगद हँसा और बोला-रावण ! अन्यायी से लड़ना और उसे मारना ही सच्चा धर्म है। चाहे वह मेरा पिता हो अथवा आप ही क्यों न हों।
अंगद के ऐसे तेजस्वी शब्द सुनकर रावण को उतर देते न बना।
संबध नहीं, नीति और न्याय का पक्ष ही वरेण्य है।
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