एक बार एक व्यक्ति ने एक ऊँची बल्ली पर रत्नजडि़त कीमती कमंड़लु टाँग दिया और घोषणा की कि जो कोई साधु इस बल्ली पर सीधा चढ़कर कमंड़लु उतार लेगा उसे यह कीमती पात्र ही नहीं, बहुत दक्षिणा भी दूँगा। बहुत से त्यागी और विद्वान साधुओं ने भी प्रयत्न किया, पर किसी को सफलता न मिली। अंत में कष्यप नामक नट विद्या में बहुत-सा जीवन बिताकर साधु बने एक बौद्व भिक्षु ने उस बल्ली पर चढ़कर कमंडलु उतार लिया। उसकी बहुत प्रशंसा हुई और धन मिला।
जब यह समाचार भगवान बुद्व के पास पहुँचा तो वे बहुत दुखी हुए। उन्होंने सब शिष्यों को बुलाकर कहा-‘‘भविष्य में तुम में से कोई भिक्षु इस प्रकार का चमत्कार न दिखाए और न उन लोगों से भिक्षा ग्रहण करे जो साधु का आचार नहीं, चमत्कार देखकर उसे बड़ा मानते हों।’’
चमत्कार नहीं, चरित्र और ज्ञान ही साधुता की कसौटी है।
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