स्वयं क्रियाकुशल और सक्षम होने के बावजूद भी कितने ही व्यक्ति अन्य औरों से तालमेल न बिठा पाने के कारण अपनी प्रतिभा का लाभ समाज को नहीं दे पाते । उदाहरण के लिए फुटबाल का कोई खिलाड़ी अपने खेल में इतना पारंगत है कि वह घण्टों गेंद को जमीन पर न गिरने दे परन्तु यह भी हो सकता है कि टीम के साथ खेलने पर अन्य खिलाड़ियों से तालमेल न बिठा पाने के कारण वह साधारण स्तर का भी न खेल सके ।
अक्सर संगठनों में यह भी होता है कि कोई व्यक्ति अकेले तो कोई जिम्मेदारी आसानी से निभा लेते हैं, किन्तु उनके साथ दो चार व्यक्तियों को और जोड़ दिया जाए तथा कोई बड़ा काम सौंप दिया तो वे जिम्मेदारी से कतराने लगते हैं । कुछ व्यक्तियों को यदि किसी कार्य की जिम्मेदारी सौंप दी जाय तो हर व्यक्ति यह सोचकर अपने दायित्व से उपराम होने लगता है कि दूसरे लोग इसे पूरा कर लेगें ।
बौद्ध साहित्य में सामूहिक जिम्मेदारी के अभाव का एक अच्छा प्रसंग आता है । किसी प्रदेश के राजा ने कोई धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए राजधानी के निवासियों को निर्देश दिया कि सभी लोग मिलकर नगर के बाहर तैयार किए गए हौज में एक-एक लोटा दूध डालें । हौज को ढक दिया गया था और निश्चित समय पर जब हौज का ढ़क्कंन हटाया गया तो पता चला कि दूध भरने के स्थान पर हौज पानी से भरा था । कारण का पता लगाया गया तो मालूम हुआ कि प्रत्येक व्यक्ति ने यह सोच कर दूध के स्थान पर पानी डाला था कि केवल मैं ही तो पानी डाल रहा हूँ, अन्य और लोग तो दूध ही डाल रहे हैं ।
समाज में रहकर अन्य लोगों से तालमेल बिठाने तथा अपनी क्षमता योग्यता का लाभ समाज को देने की स्थिति भी सामाजिकता से ही प्राप्त हो सकती है ।
जीवन देवता की साधना - आराधना (2)-2.20
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