किसी समय तलवार चलाने वाले और सिर काटने में अग्रणी लोगों को योद्धा कहा जाता था पर अब मापदण्ड बदल गया । चारों और संव्याप्त आतंक और अनाचार के विरुद्ध संघर्ष में जो जितना साहस दिखा सके, और चोट खा सके उसे उतना ही बड़ा बहादुर माना जायगा । उस बहादुरी के ऊपर ही शोषण-विहीन समाज की स्थापना सम्भव हो सकेगी । दुर्बुद्धि से, कुत्सा और कुण्ठा से लड़ सकने में जो लोग समर्थ होंगे उन्हीं का पुरुषार्थ, पीडि़त मानवता को त्राण दे सकने का यश संचित कर सकेगा ।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्ययुग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (४.७२)
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