1) विषमताओं का यदि समुचित सदुपयोग किया जा सके तो जीवात्मा पर चढें हुए जन्म-जन्मांतर के कषाय-कल्मष धुलते है। प्रवृत्तियों का परिष्कार होता हैं - आंतरिक शक्तियों में निखार आता हैं । इसलिए जीवन में विषम क्षणों के उपस्थित होने पर इनसे घबराने की बजाय इनके सदुपयोग की कला सीखनी चाहिए।
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2) वियोग की व्यथा और श्रद्धा की प्रखरता का उभार जिस रचनात्मक मार्ग से प्रकट हो सके उसे श्राद्ध कहते है।
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3) विद्या धन बाँटने से बढता है।
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4) विद्या के समान संसार में कोई नेत्र नहीं है।
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5) विद्या उसे कहते हैं, जो सन्मार्ग पर चलाये और विनयशील बनाये।
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6) विद्या वही हैं जो (बन्धनो से) मुक्ति प्रदान कर दे।
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7) विद्या वही हैं जो सत्प्रवृत्तियों को उभार दे, सद्भावनाओ को समर्थ कर दे।
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8) विद्या, शूरता, चतुराई, बल, धीरज-ये पाँच स्वाभाविक मित्र है।
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9) विद्वान वे व्यक्ति हैं जो अपने ज्ञान के अनुसार आचरण करते है।
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10) विश्व हटकर उस व्यक्ति को राह देता हैं जो जानता हैं कि वह कहाँ जा रहा है।
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11) विकसित आत्मा को ही दूसरे शब्दो में परमात्मा कहा जाता है।
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12) विपत्ति में धीरज, सम्पत्ति में क्षमा, सभा में वाक्य चातुरी, युद्ध में पराक्रम, यश में प्रेम और शास्त्रों में लगन-ये सद्गुण महात्माओं में स्वाभाविक होते है।
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13) विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने आती है।
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14) विपत्ति मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार का अवसर प्रदान करती है।
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15) विपत्ति तुम्हारे प्रेम की कसौटी है।
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16) विपरीत परिस्थितियों में भी जो ईमान, साहस और धैर्य को कायम रख सके, वस्तुतः वहीं सच्चा शूरवीर है।
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17) विश्राम परिश्रम की मधुर चटनी है।
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18) विश्राम और उपवास सर्वोत्तम औषधि है।
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19) विराट वृक्ष की शक्ति हमेशा छोटे से बीज में छिपी रहती है। यही बीज खेत में पडकर उपयोगी खाद-पानी पाकर विशालकाय छायादार वृक्ष के रुप में प्रस्फुटित हो जाता है। उसी तरह हम सबके भीतर भी समस्त संभावनाए एवं अनंत शक्तिया बीजरुप में छिपी हैं, जिनको विवेक के जल से अभिसिंचित कर श्रेष्ठ विचारों की उर्वरा खाद देकर जाग्रत किया जा सकता है। यदि हम अपने अंदर की अमूल्य शक्ति एवं सामर्थ्य को जान लेने में सफल हो जाए तो सहज ही महानता के शिखरों पर पहुच सकते है।
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20) विज्ञान बाहर की प्रगति हैं और ज्ञान अन्तः की अनुभूति है।
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21) विश्व प्रेम ही लोकतन्त्र हैं, अन्तर क्रान्ति महान् मन्त्र है।
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22) विवाह एक आध्यात्मिक साधना हैं। यह एक ऐसी प्रेम वल्लरी हैं जिसका अभिसिंचन त्याग और उत्सर्ग की उच्च भावना से किया जाता है।
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23) विवाह का वास्तविक अर्थ हैं-दो आत्माओ की पृथकता को समाप्त करके एक दूसरे के प्रति समर्पण।
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24) विवाह और मित्रता समान स्थिति वाले से करना चाहिये।
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