सोमवार, 11 जुलाई 2011

किसी से घृणा न करो।

1) किया हुआ पुरुषार्थ ही देव का अनुसरण करता हैं, किन्तु पुरुषार्थ न करने पर देव किसी को कुछ नहीं दे सकता।
--------------
2) किसी का बुरा होने से आप राजी होते हैं तो आपके मन में बुरा करने का भाव हैं-यह कसौटी है।
--------------
3) किसी कार्य को खूबसूरती से करने के लिये मनुष्य को उसे स्वयं करना चाहिये।
--------------
4) किसी को स्वावलम्बी बना देना ही उसकी वास्तविक सहायता है। 
--------------
5) किसी के चरणों में सिर रखे तो कैसे रखे ? प्रीति से, विनय से। सिर झुकाना पर्याप्त नहीं हैं प्रीत होनी चाहिए। वचन में विनय हो, हृदय में प्रीत हो और कर्म में शीश झुका हुआ हों तभी घटना घटती है।
--------------
6) किसी के अहित में कभी भी निमित्त मत बनो।
--------------
7) किसी सिद्धान्त की सार्थकता उसकी व्याहारिक अनुभूति में है।
--------------
8) किसी भी वस्तु की सुन्दरता आपके मूल्यांकन करने की योग्यता में छिपी है।
--------------
9) किसी भी वेद, पुराण, बाइबिल, कुरान में रेगिस्तान नाम का शब्द नहीं मिलता हैं, यह सभ्य मानवों की देन है।
--------------
10) किसी भी अवस्था में मन को व्यथित मत होने दो। याद रखो, परमात्मा के यहा कभी भूल नहीं होती और न उसका कोई विधान दया से रहित ही होता है।
--------------
11) किसी सद्उद्धेश्य के लिये जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है।
--------------
12) किसी से घृणा न करो।
--------------
13) किसी से भी द्वेष हो तो समझे कि हमारी उपासना ठीक नहीं है।
--------------
14) किसी व्यक्ति की महानता की परख यह हैं कि वह अपने से छोटो के लिये क्या सोचता हैं और क्या करता रहा ?
--------------
15) किसी आदर्श के लिये हॅसते-हॅसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बडी बहादुरी है।
--------------
16) किसने कितना दान किया, यह मत देखिये, वरन् यह पूछिये कि किस प्रयोजन कि लिये किसके हाथ सौंपा।
--------------
17) किवदंतिया वे ही बनते हैं, जो जीवन के प्रत्येक क्षण से सीखने की क्षमता रखते है।
--------------
18) क्रिया काण्ड को सब कुछ मान बैठना और व्यक्तित्व के परिष्कार की, पात्रता की प्राप्ति पर ध्यान न देना, यही एक कारण हैं जिसके चलते उपासना-क्षेत्र में निराशा छाई और अध्यात्म को उपहासास्पद बनने-बदनाम होने का लांछन लगा।
--------------
19) क्रिया में कुशलता ही योग है।
--------------
20) क्रियाशील लोहा भी चांदी की तरह चमकने लगता है।
--------------
21) मित्रता समान शील और स्वभाव वालों के बीच ही स्थिर रहती है।
--------------
22) मिलता हैं उसको प्रभु प्यार, जो करता हैं आत्म सुधार।
--------------
23) पिछला कदम उठाकर ही अगला बढाया जा सकता हैं। तुच्छ के छोडने पर ही गौरव पाया जा सकता है।
--------------
24) प्रियवादी देवता कहलाते हैं और कटुवादी पशु।

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin