जब रामसेतु बनने की खबर लंका पहुँची तो लंकावासियों ने विद्राह कर दिया। सेनापति ने रावण से कहा- इस युद्ध में जनता आपका साथ नहीं देगी। जिस राम के नाम के पत्थर तैर रहे हैं उस राम में कितनी ताकत होगीं, यह सोचकर जनता भयभीत हैं। जनता का विश्वास जीतने के लिए आपको भी अपने नाम का पत्थर तिराना होगा। यह सुन रावण अन्दर से हिल गया। उसने कुछ क्षण सोचा और पत्थर तिराने की घोषणा कर डाली। सब लंकावासी समुद्र तट पर पहुँच गए। रावण ने बड़ा भारी पत्थर उठाकर रावण लिखा और समुद में फेंक दिया और यह देखकर सबको आश्चर्य हुआ कि पत्थर डूबने की बजाय तिर गया। सभी रावण की जयजयकार करने लगे। रात को मंदोदरी ने पूछा- राम में तो शील, सत्य और धर्म की शक्ति है।, पर आपने ऐसा कमाल कैसे कर दिया ? रावण ने कहा- प्रियतमे, तुमसे क्या छिपाना। मैने पत्थर से कहा था- ‘‘हे पत्थर ! तुझे राम की सौगंध अगर डूब गए तो।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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