समर्थ गुरू रामदास व छत्रपति शिवाजी कहीं जा रहे थे। बीच में नदी आई । समर्थ गुरू ने शिवा से कह- नदी गहरी हैं, पहले मैं जाता हूँ, कोई खतरा नहीं होगा तो तुम्हें आवाज दे दूंगा। शिवाजी ने कहा- नहीं, पहले मैं जाउंगा। दोनों के बीच तें तनातनी हो गई। आखिर पहले शिवाजी चले गए। सकुशल पहुँचने के बाद उन्होंने गुरूजी को कहा- आप भी आ जाइए। गुरूजी ने पहुँचते ही कहा- शिवा, आज तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं दूसरा शिवा कहाँ से लाता। शिवाजी ने कहा- मैं डूब जाता तो समर्थ गुरू रामदास में इतनी ताकत हैं कि वह सौ-सौ दूसरे शिवा पैदा कर देता, पर आपको कुछ हो जाता तो इस शिवा में इतनी ताकत नहीं हैं कि वह एक भी समर्थ गुरू रामदास को पैदा कर पाता।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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