शनिवार, 15 जनवरी 2011

सुकरात

सुकरात शिष्यों को पढ़ा रहे थे। पत्नी ने आवाज दी- भोजन तैयार हैं, खा लो। सुकरात तो पढ़ाने में मग्न थे। फिर जोर से आवाज आई- खाना खालो। सुकरात ने कहा- आ रहा हूँ। थोड़ी देर बाद भी सुकरात नही पहुँचे तो पत्नी क्रोधित हो गई। इस बार उसने गुस्से में लाल होकर कहा- जल्दी आ जाओ और खाना खा लो। शिष्य समझ गए, उन्होंने कहा- गुरूदेव चले जाइए, पर सुकरात तो पढ़ाने में मस्त थे। पत्नी का पारा चढ़ गया, उसने उठाया पानी का मटका और सुकरात के माथे पर उँडेल दिया। सभी शिष्य भौचक्के रह गए। मुस्कुराते हुए सुकरात ने कहा- देखो, मेरी पत्नी कितनी अच्छी हैं, यह पहले तो गरजती हैं फिर बरसती भी हैं। 

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