सुकरात शिष्यों को पढ़ा रहे थे। पत्नी ने आवाज दी- भोजन तैयार हैं, खा लो। सुकरात तो पढ़ाने में मग्न थे। फिर जोर से आवाज आई- खाना खालो। सुकरात ने कहा- आ रहा हूँ। थोड़ी देर बाद भी सुकरात नही पहुँचे तो पत्नी क्रोधित हो गई। इस बार उसने गुस्से में लाल होकर कहा- जल्दी आ जाओ और खाना खा लो। शिष्य समझ गए, उन्होंने कहा- गुरूदेव चले जाइए, पर सुकरात तो पढ़ाने में मस्त थे। पत्नी का पारा चढ़ गया, उसने उठाया पानी का मटका और सुकरात के माथे पर उँडेल दिया। सभी शिष्य भौचक्के रह गए। मुस्कुराते हुए सुकरात ने कहा- देखो, मेरी पत्नी कितनी अच्छी हैं, यह पहले तो गरजती हैं फिर बरसती भी हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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