मंगलवार, 27 जुलाई 2010

महानता की झांकी

बंगाल के एक छोटे से स्टेशन पर जब रेल रुकी तो एक युवक अपने छोटे से बक्से के लिए कुली को जोर-जोर से आवाज लगाया पर इतने छोटे स्टेशन पर कुली कैसे मिलता ? तभी एक अधेड़ उम्र का आदमी जो ये सब देख रहा था वह उसके पास चला आया. उस युवक ने उसको कुली समझकर पहले डांटा -'तुम लोग बहुत सुस्त हो जी मैं कब से चिल्ला रहा हूँ ,चलो जल्दी से इस बक्से को उठाओ . '

उस आदमी ने बिना कुछ कहे सुने बक्सा उठाकर उस युवक के पोछे चल पड़ा . घर पहुचने पर जब युवक ने पैसे देने चाहे तो तो वह आदमी बोला -'धन्यवाद मुझे पैसे नहीं चाहिए '

तभी घर में से उस युवक का बड़ा भाई निकला और उस आदमी को देखते ही आदर के साथ बोला -'नमस्कार विद्यासागर जी !'

उस युवक के तो होश उड़ गए तुरंत उसने उनके चरणों में लोटकर ईश्वरचंद विद्यासागर जी से माफ़ी माँगा. उसे उठाकर गले लगते हुए बोले-'भाई ! मेरे देशवासी अभिमान त्याग कर अपने हाथो से अपना काम स्वयं करे मेरी यही इच्छा है ,आगे से स्वावलंबी बनो ,यही मेरा मेहनताना है . '

ऐसे प्रसंग व्यक्ति को आत्मावलंबन हेतु प्रेरणा तो देते ही है, बड़ो की उस विनम्रता -निरहंकारिता को भी दर्शाते है जिसके कारण वे महान कहलाते है . 

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