एक बार अष्टावक्र राजा जनक के सभा में गए . उनके हाथ पांव टेढ़े-मेढ़े थे और वो झुक कर भी चलते थे .उनका कूबड़ निकला हुआ था . उन्हें देखते ही राजा के सभी सभासद हंसने लगे . उन्हें हँसता देखकर अष्टावक्र ने राजा से कहा -"क्यों रे राजा ?तुने अपनी सभा में केवल चमारों को ही भर्ती कर रखा है?"
राजा ने तुरंत उत्तर दिया कि ये चमार थोड़ी है इनमें कोई ब्राह्मण है तो कोई ठाकुर है कुछ बनिये भी है.
अष्टावक्र ने बोला नहीं, सब के सब चमार है क्योंकि इन्हें सिर्फ चमड़ा ही नजर आता है इन्हें चमड़े का ही ज्ञान है.हमारे बाहर की चमड़ी को देखा पर हमारे अन्दर जो देखने लायक है इन्होने हमारे ज्ञान को नहीं देखा .इन्होने सिर्फ चमड़े को देखा और चमड़े को देखने परखने वाला तो चमार ही होता है.
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