वह महज बारह साल का एक लड़का था और उसे उसके पिता ने उसे एक आठ एम एम का कैमरा बतौर उपहार के रूप में दिया . पर इस बच्चे ने अपनी कल्पनाशक्ति के बदौलत मात्र सोलह साल की उम्र में ही पंद्रह लघु फिल्मे बना डाली थी .इसी आठ एम एम के कैमरे से मात्र 500 डॉलर की बजट वाली अपनी पहली विज्ञान फिल्म बनाई - 'फायर लाइट' . इस महान निर्देशक का नाम है स्टीवन स्पीलबर्ग (Steven Speilberg) .
स्पीलबर्ग का जीवन इस बात की प्रेरणा देता है कि प्रतिभा उम्र की न तो मोहताज होती है और न ही किसी बात का इन्तजार करती है.
सिर्फ सत्रह साल की उम्र में ही स्पीलबर्ग ने स्टूडियो के चक्कर लगाने शुरू कर दिया ,सामने बहुत लम्बा और संघर्षपूर्ण रास्ता था .पर इस दौरान वे सभी चीजे सिखने में व्यस्त रहे और जो भी काम मिला उसे बेहतर तरीके से करने की कोशिश करते गए ,कई बार असफलता का मुंह देखना पड़ा पर इन सब चीजो ने ही उन्हें एक बेहतर फ़िल्मकार बनाया और लम्बे संघर्ष के बाद वह घडी भी आयी जिसका स्पीलबर्ग को इन्तजार था . वह थी उनकी फिल्म " जॉ '(jaws) की अभूतपूर्व सफलता . जिसने पूरी दुनिया में अपने झंडे गाड़ दिए .
तीन बिलियन डॉलर से भी जयादा सम्पति के इस मालिक को टाईम्स मैगजीन ने उन्हें इस शताब्दी के सौ सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में शामिल किया है.
कोई भी काम एक दिन में सफल नहीं होता दरअसल यह तो एक पेड़ जैसा होता है पहले इसके बीज आपके आत्मा में बोना पड़ता है ,हिम्मत की खाद से इसे पोषित करना पड़ता है और मेहनत के पानी से इसे सींचना पड़ता है तब जाकर वह सालों बाद फल देने लायक होता है . सफलता के लिए इन्तजार करना आना चाहिए तुरंत फल की उम्मीद करना कोरी मुर्खता से अधिक कुछ भी नहीं है.
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