एक बार राजा ने राजशिल्पी को हुक्म दिया 'ऐसा भवन का निर्माण करो ,जो खूबसूरती और सहूलियत के हिसाब से राज्य भर में बेनजीर हो .'
भवन-निर्माण में अंदाजन खर्च हो सकने वाली राशि राजशिल्पी को दे दी गयी . इतनी दौलत अपने कब्जे में देख शिल्पी की नियत बिगड़ गयी और उसे लोभ ने जकड लिया .उसने सोचा क्यों न घटिया और नकली सामग्री से भवन बना दूं .
कुछ समय में भवन तैयार हो गया, महाराज बहुत खुश हुए. भवन का उदघाटन समारोह धूम-धाम से मनाया गया .समारोह में महाराज ने एलान किया -'आज मेरी एक पुरानी अभिलाषा पूर्ण हुई है ,अपने राजशिल्पी के योग्यता और राजभक्ति को पुरस्कृत करना चाहता हूँ .पुरस्कार तैयार है मैं इस राज्य की सबसे खुबसूरत ईमारत को ही राजशिल्पी को पुरस्कार में देना चाहता हूँ .'
इतने बड़े पुरस्कार की घोषणा पर वहां उपस्थित सारे लोग राजशिल्पी को बधाई दे रहे थे ,पर लोगों के बीच खड़ा राजशिल्पी पुरस्कार पाकर भी उस पर खुश नहीं हो पा रहा था .
किसी को नुकसान पहुंचाकर हासिल किया हुआ लाभ स्वयं को भी नुकसान पहुंचता है .
साभार : लक्ष्य पत्रिका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें