एक बार साधु ने आकर गांधीजी से पूछा-``हम ईश्वर को पहचानते नहीं, फिर उसकी सेवा किस प्रकार कर सकते हैं ?´´ गांधीजी ने उत्तर दिया-``ईश्वर को नहीं पहचानते तो क्या हुआ,, इसकी स्रष्टि को तो जानते हैं। ईश्वर की स्रष्टि की सेवा ही ईश्वर की सेवा हैं।´´
साधु की शंका का समाधान न हुआ, वह बोला-``ईश्वर की तो बहुत बड़ी स्रष्टि हैं, इस सबकी सेवा हम एक साथ कैसे कर सकते हैं ?´´ ईश्वर की स्रष्टि के जिस भाग से हम भली-भाँति परिचित हैं और हमारे अधिक निकट हैं, उसकी सेवा तो कर सकते हैं। हम सेवा कार्य अपने पड़ौसी से प्रारंभ करे। अपने आँगन को साफ करते समय यह भी ध्यान रखें कि पड़ौसी का भी आँगन साफ रहे। यदि इतना कर लें तो वही बहुत हैं।´´ गांधी जी ने गंभीरतापूर्वक समझाया। साधु उससे बहुत प्रभावित हुए।
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