इंग्लेंड की कॉमन सभा में वाद-विवाद चल रहा था। एक सदस्य ने अपने विरोधी से कहा, ``महाशय ! उन दिनों को भूल गये, जब आप जूतों पर पॉलिश किया करते थे।´´ उस सदस्य ने गम्भीरता पूर्वक उत्तर दिया,-``महोदय ! मेरा काम छोटा रहा हैं, हृदय नहीं। मेरी पॉलिश भी ईमानदारी के साथ ही की जाती थी, किसी को असंतुष्ट नहीं किया।´´ विरोधी सदस्य इस नम्रतापूर्वक उत्तर से बड़े लज्जित हुए और अनुभव किया कि श्रेष्टता का आधार उच्चाधिकार नहीं वरन् सदाचार हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
1 टिप्पणी:
सिर्फ़ कुछ शबदों में बहुत गूढ बात कह दी आपने
अजय कुमार झा
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