स्वामी विवेकानंद अमेरिका से लौटकर मद्रास रुके थे। वहाँ उन्होने फरवरी, 1897 में `मेरी समर नीति´ ,`भारत के महापुरूष´, `राष्ट्रीय जीवन में वेदातं की उपयोगिता´ तथा `भारत का भविष्य´विषय पर व्याख्यान दिए। थकान के बावजूद विभिन्न विषयों पर स्वामी जी का इतना गूढ़ प्रतिपादन व उसकी श्रमशीलता देखकर आयोजक श्री सुंदरराम अय्यर ने पुछा कि उन्हे इतना परिश्रम करने के लिए शक्ति कहाँ से मिलती है " स्वामी जी ने कहा-``किसी भी भारतीय से पूंछकर देख लीजिए। आध्यात्मिक कार्य हेतु किसी भी भारतीय को कभी थकान का बोध नही होता ।´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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