बिंबसार महावीर के दर्शन करने गए। मार्ग में एक महात्मा का स्थान भी पड़ता था। वे एक साम्राज्य के स्वामी थे, पर सब छोड़कर कठोर तप कर रहे थे। उनके दर्शन कर महावीर के पास पहुँचे तो पूंछा कि वो दीर्धकाल से तप कर रहे है । उनकी गति क्या होगी , अंत क्या होगा , महावीर बोले-``इस क्षण यदि वो शरीर छोड़ दे तो सातवे नरक को प्राप्त होंगें।´´ बिंबसार स्तब्ध रह गए। पुन: कहा-``हाँ ,मै उन्ही के विषय में बता रहा हूँ। अभी मरे तो स्वर्ग लोक में जाएँगे।´´ बडी अजीब बात लगी बिंबसार को । फिर पूंछा-``फिर से देखिए-बताएँ क्या गति होगी -``अब वे सिद्धो के लोक को जाएँगे-अब वे मोक्ष को प्राप्त हो गए है।´´ रहस्य खोलते हुए महावीर ने कहा-``जिस पल तुमने पूंछा था, उस समय उसके पास राज्य पर शत्रु के हमले की खबर आई थी। मंत्री ने आकर कहा-`बहु मार दी गई´ उनके अंदर का क्षत्रिय जाग उठा था। `लाओ तलवार´, यह कह उठे थे। इसीलिए कहा था `नरक जाएँगे।´ दूसरे पल उनने सोचा, सिर पर जटाएँ है-किसका बेटा , किसकी बहु-कैसा राज्य, किसका बदला ! विकृति धुल गई । मै अपने रास्ते चलूँगा । फिर स्वर्ग सिद्धों के लोक की बात कही । कर्म की अंतिम पीड़ा वे भुगत चुके थे। अत: अशेष हो गए थे। इसलिए मैने कहा-मुक्त हो गए । जैसी मन: स्थिति में आप जीते हैं, वैसी ही गति होती है। ´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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