स्वामी विवेकानंद उन दिनों अमेरिका प्रवास में थे । वे अपना भोजन अधिकतर स्वयं ही पकाते थे । एक दिन उन्होंने अपना भोजन बनाकर तैयार किया । इतने में ही कुछ भूखे बालक उधर आ निकले । स्वामी जी ने सारा भोजन उन बालकों में बांट दिया और इससे उन्हें बडी प्रसन्नता हुई । पास ही एक अमेरिकन महिला खडी थी । उसने पूछा,”स्वामी जी । आपने बिना कुछ खाए ही सारा भोजन इन बालकों में क्यों बांट दिया ?” वे बोले, माता जी । पेट की भूख से बडी होती है आत्मा की भूख और आत्मा के तृप्त होने पर जीवन की समस्त क्षुधाएं एक बार में ही शांत हो जाती हैं । मैंने अपनी वास्तविक भूख शांत करने के लिए ही भोजन बच्चों में बांट दिया ।”
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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