आलम बाजार मठ में नवीन संन्यासी संघ की स्थापना के समय स्वामी विवेकानंद ने सन्यासियों के लिए कुछ नियम बनाए (१८९८)। ये नियम आज भी उसी तरह पालन किए जाते हैं । आज समाज में संन्यासियों की भीड है । उसमें पलायनवादी, सुख की चाह में आए लोग ज्यादा हैं । यदि हम इन नियमों को देखें तो पता चलेगा कि उस महामानव की दृष्टि क्या थी ? स्वामी जी ने कहा था, आहारसंयम के बिना चित्तसंयम असंभव है । संन्यासी अतिभोजन से बचें । दृढतापूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है । प्रातःकाल जल्दी उठना, ध्यान, जप करना, तपस्वी जीवन में निरत रहना, बातचीत मात्र धर्म के विषयों पर ही करना-यह हर संन्यासी के लिए अनिवार्य है । समाचारपत्र पढना या गृहस्थों के साथ मेल-जोल ठीक नहीं । संन्यासी धनी लोगों के साथ कोई संबंध न रखें । उनका कार्य तो गरीबों के बीच है । हमारे देश के सभी संप्रदायों में धनिक लोगों की खुशामद, उन्ही पर निर्भर होने का भाव आ जाने से वे प्राणहीन हो चले हैं । किसी भी गृहस्थ को साधुओं के बिस्तर पर न बैठने दें । भोजन की व्यवस्था दोनों की अलग-अलग हो । जब भी तुम देखो कि तुम इस आदर्श से पिछड रहे हो, कठोर जीवन के अनुपयुक्त हो, तो बेहतर होगा कि पुनः गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर लो । संन्यास को कलुषित मत करना ।”
आज की परिस्थितियों में सच्चे संन्यासी ढूंढे जाने चाहिए ।
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