एक पादरी जहाज से यात्रा कर रहे थे । जहाज ने एक द्वीप के पास लंगर डाला । पादरी ने सोचा इस द्वीप पर कोई होगा तो उसे प्रार्थना सिखा आयें । वहां उन्हें केवल तीन साधु मिले । उनसे पूछा,”कुछ प्रार्थना-उपासना करते हो ?” उन्होंने बताया-हाँ । हम तीनों ऊपर हाथ उठाकर कहते हैं, हम तीन हैं । तुम तीन हो । तुम तीनों हम तीनों की रक्षा करो । पादरी हंसे, बोले, क्या पागलपन करते हो, तुम्हें प्रार्थना करनी भी नहीं आती । भोले साधुओं ने प्रार्थना सिखाने का आग्रह किया । पादरी ने उन्हें बाइबिल के आधार पर प्रार्थना करना सिखाया । अभ्यास हो जाने पर वैसा ही करने को कहकर जहाज पर आ गये । जहाज चल पडा । दूसरे दिन पादरी जहाज के डेक पर टहल रहे थे । पीछे से आवाज सुनाई दी, ओ पवित्र आत्मा रूको । पादरी ने देखा वे तीनों साधु पानी पर बेतहाशा दौडते पुकारते चले आ रहे थे। आश्चर्य चकित पादरी ने जहाज रूकवाया, उनसे इस प्रकार आने का कारण पूछा । वे बोले, आप हमें प्रार्थना सिखा आये थे, रात में हम सोये तो भूल गये । सोचा आपसे ठीक विधि पूछ लें, इसलिए दौड आये । पादरी ने पूछा, पर आप पानी पर कैसे दौड सके ? उन्होंने कहा, हमने भगवान से प्रार्थना की, कहा -हम अनजान हैं, पवित्र पादरी जो सिखा गये थे, भूल गये । दौड हम लेंगे, डूबने तुम मत देना । बस, इतना ही कहा था । पादरी ने घुटने टेक कर उनका अभिवादन किया और कहा, आप जैसी प्रार्थना करते हैं, वही सही है, मैं ही गलत समझा था । प्रभु आपसे प्रसन्न हैं । वे तीनों सन्तुष्ट होकर पादरी का आभार प्रकट करके जैसे आये थे, वैसे ही लौट गये । सर्वव्यापी भगवान सबके भाव समझता है, उसी आधार पर मान्यता देता है ।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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