सोमवार, 28 नवंबर 2011

भूत, भविष्य और वर्तमान

परम्परा अतीत की देन होती है और परिवर्तन भविष्य का प्रतीक । मनुष्य का जितना सम्बन्ध वर्तमान से होता है, उतना भूत अथवा भविष्य से नहीं । मनुष्य को वर्तमान में ही जीना पड़ता है । अतीत का वैभव उसका कोई कार्य सम्पादित नहीं कर पाता और भविष्य के स्वप्न भी कुछ काम नहीं आते । मनुष्य को अपने वर्तमान का ही निर्माण करना चाहिए, किन्तु इस निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री वर्तमान में नहीं होती उसके लिए उसे अतीत के अनुभवों और भविष्य की कल्पनाओं का भी अवलम्बन लेना पड़ता है । वर्तमान का भवन भूत और भविष्यत्‌ की आधार-शिलाओं पर बनाया जा सकता है । 

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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